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गठबंधन से तात्पर्य दो लोगो का किसी एक मकसद के लिए एक होकर सहयोग करना. गठबंधन हर क्षेत्र में हो सकता है. इसी सोच के साथ इसे राजनेति में भी लाया गया लेकिन जिन्होंने इस बारे सोचा शायद वो इस बात को भूल गए थे की राजनीती में एक ही मकसद होता है और वो है कुर्सी का…और जब तक यह मकसद मौजूद है तब तक सच्चा गठबंधन मिल पाना मुश्किल हैं. यदि मिल मिल भी जाता तो सिर्फ आंशिक होगा उसे अंतहीन मानना मुर्खता होगा.. थोड़े समय क लिए किया गया गठबंधन समस्या ज्यादा पैदा करेगा बजाय विकास के … और जब ऐसी परेशानी होती है तो सत्ता पक्ष के पास एक ही जवाब होता है ” गठबंधन की मज़बूरी है “…. समझ में नहीं आता कि जब पता है की गठबंधन मज़बूरी है तो उसे किया क्यों जाता है ?… लेकिन इसका जवाब भी यही हो सकता है हर एक को कुर्सी चाहिए चाहे वो कैसे भी आये वरना दूसरी पार्टी वाले आजायेंगे और वो राज करेंगे… अपने स्वार्थ को जमा पहनने का एक नया तरीका निकला है कि गठबंधन देश हित में करना पड़ा..दो अलग अलग विचार धारा वाले डालो ऐसे समय में मकसद एक होता है, सत्ता…. जिसे पाने के लिए जन्म जन्म के दुश्मन मने जाने वाली पार्टिया एक होने से भी नहीं हिचकिचाती…. चुनावो में एक दुसरे के खिलाफ लड़ने वाली परिणामो के बाद एक ही मंच पर गले मिलते नज़र आ जायेंगे…. हम बेचारे देखते रह जाते है कि ये क्या हुआ कल तक जो जानवरों की तरह लड़ रहे थे वो भाई भाई कैसे हो गए… लेकिन हम अब भी भूल कर रहे है आज जो साथ वक़्त आने पर दुसरो के साथ होंगे और परसों तीसरे के साथ… और इसी गठबंधन के चक्कर में हम पिस जाते है… हमारे हक के अहम् फैसले रुक जाते है. हमे बताया जाता है कि गठबंधन नहीं किया गया तो फिर चुनाव करवाने पड़ेंगे जिसके चलते जनता पर क़र्ज़ का बोझ बढेगा और लेकिन गठबंधन के चलते जिन कार्यो से राजकोष का जो नुक्सान होता है वो चुनाव खर्च से महंगा पड़ता है..और इस कारण जो राजकोषीय घाटा होता उसकी भरपाई हमे टेक्स चुकाके करनी होती हैं… दोनों तरफ से हर्जाना हमे ही भरना होता है.. इतना सब कुछ देखने के बाद यही कह सकते है गठबंधन मज़बूरी या ज़रूरी……….
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