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प्रजातंत्र में मीडिया को चोथा स्थम्ब माना गया है… मीडिया की भूमिका समाज में एक आईने के समान है…. जिसमे देश व समाज को अपना प्रतिबिम्ब दिखाई देता है. विगत कुछ वर्षो से मीडिया का स्वरुप बदला सा नज़र आ रहा है.. इसकी जिम्मेदारी मीडिया को लेनी होगी.. मीडिया को राजनीती घरानों, उद्योग घरानों के साथ साथ फिल्म से जुड़े लोगो ने भी एक हथियार के रूप में कम में लेना प्रारंभ कर दिया है… एक दुसरे को प्रतियोगिता से बहार करने में ये हथियार अचूक कार्य कर रहा है… आज किसे सुपर स्टार बनाना है और किसे धरातल पर लाना है इस बात में मीडिया की भूमिका बढ गई है… महज दो फिल्मो में कम करने वाला कलाकार रातो रत सितारा बन जाता है.एक मैच में अच्छा खेलने पर टीम को विश्व विजेता बना दिया जाता है और एक हार उससे धरातल लड़ते है .. एक वो भी दौर था जब बरसो मेहनत करने बाद यह मुकाम हासिल होता था. अमिताभ बच्चन को सुपर स्टार का दर्जा रातो रत नहीं मिला उन्हें इस मुकाम के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी.. लेकिन आज के सितारों के लिए यह मुकाम बनाना कोई मुश्किल कम नहीं है… अगर बात राजनीती की करे तो यहाँ भी मीडिया को किश्मत की चाबी माना जा रहा है. न जाने बयानों को किस किस तरह से तोड़ मरोड़ के पेश किया जाता है कि उसका वास्तविक अर्थ धूमिल हो जाता है… चुनावो में तो मीडिया की भूमिका और भी बढ जाती है.. नेता जी का मीडिया से रिश्ता अच्छा है तो वारे न्यारे वरना रिश्ता सुधारो..
मैं इस बात का सारा दोष मीडिया के सर थोपने वाला नहीं हूँ.. वे भी क्या करे सागर में रह कर मगरमछ से बैर तो मोल नहीं ले सकते.. उन्हें मज़बूरी में ये सब करना पड़ता है… आप कहेंगे.. “मज़बूरी कैसी मीडिया तो स्वतंत्र है फिर डर कैसा”.. अजी साहब निडर होने से कमाई नहीं होती ओर कमाई नहीं होगी तो भरी भरकम टेकनोलोजी के साथ स्टाफ का खर्चा कैसे निकालेंगे.विज्ञापन भी कोई चीज है की नहीं.. विज्ञापन देने वालो से बैर मोल लेंगे तो फिर चल पड़ा धंधा.. अब वो बात कहाँ जहाँ पत्रकारिता के आगे अच्छे अच्छे नतमस्तक होते थे और जानते थे कलम की धार को ना जाने कब किस के काले चिट्ठो को उजागर कर दे… देश को आज़ादी दिलाने में मीडिया की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता. तब एक मात्र समाचार पत्र ही माध्यम था देश में हो रहे आन्दोलन को जानने का.. आज की तरह टीवी और प्रिंट मीडिया दोनों तो थे नहीं की हाथो हाथ जानकारी मिल जाये..दूसरा उस वक़्त यह फ़र्ज़ के रूप में किया जाता था आज की तरह व्यवसाय की तरह नहीं…
व्यवसाय करने में कोई बुरे नहीं है करना चाहिए इससे स्वयं के साथ साथ हजारो को भी रोज़गार मिलता है..लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए की कुछ भी पेश करो. अब समय है मीडिया को अपने मूल स्वरुप को पहचानने की, जानना ही होगा कि उनकी कलम में कितनी ताक़त है.. सत्य को प्रमाण की कतई आवश्यकता नहीं है. सत्य सत्य ही रहता भले ही झूठ को कितना ही सजा धजा के पेश करो वह सत्य के आगे ज्यादा दिन नहीं टिक सकता… यदि इस देश को आगे ले जाने में मीडिया की भूमिका अहम् होगी…
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