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ना बोलो तो बेहतर होगा…

गोपाल रामचंद्र व्यास
गोपाल रामचंद्र व्यास
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दुनिया में दो तरह के लोग होते है एक वो जो कम बोलते है पर बोलते तथ्यात्मक और दुसरे वो जो बोलते बहुत ज्यादा है काम का कुछ नहीं होता उल्टा उनके बोलने से दुसरो को तकलीफ होती है.. ऐसी ही तकलीफ हमें होती है जब हमारे नेता व मंत्री गण बोलते है.. 13 जुलाई की दुखद घटना के बाद पूरा देश परेशां था मुंबई वासिओ के लिए और उनके दुःख व दर्द महसूस कर रहा था.. सभी इश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि ऐसा दौबारा ना हो.. जब भी ऐसी घटनाए हमारे देश में होती है तो पूरा देश इसकी निंदा सच्चे दिल से करता है और हर संभव मदद को तैयार रहता है.. उस वक़्त हम सभी भेद भाव भुला देते है क्योकि यह मानवता पर हमला होता है ना कि किसी जाति धर्म राज्य या संप्रदाय पर.. लेकिन ये बात हमारे नेताओ को कौन बताये उन्हें तो बस हर बात में राजनीती करनी होती है और बिना किये चुकते नहीं…विपक्ष सरकार पर दोष और सरकार कामिओ को छुपाने कि कोशिश में रहती है.. अभी कुछ ने तो हमारी तुलना पडोसी मुल्को से भी करते हुए कहा हमारे यहाँ उनके मुकाबले कम हमले होते है… एक ने तो पिछले कुछ महीने शांति से निकलने पर सरकार कि कामयाबी मानी..
बहुत सही कहा सर जी आपने हम पड़ोसिओ से बेहतर है कभी आप अमेरिका और ब्रिटेन से भारत कि तुलना क्यों नहीं करते जिन्होंने एक ही हमलो से सबक लेते हुए अपनी खामिओ में सुधार कर लिया… दूसरा जो पिछले कुछ महीने जिनमे हमले नहीं हुवे कामयाबी मानते है तो जरा बताये कि अब हमला क्यों हुवा व्यवस्था तो वोही थी जो पहले थी फिर क्या हुआ? या हमला करने वाले कहीं छुट्टिया मानाने तो चले नहीं गए थे जिसके कारण हमें आराम मिला…. मतलब जब भी बोलोगे सोच के नहीं बोलोगे.. भई! कहा किसने था कि बोलो, ना बोलते तो बेहतर था.. कम से कम आपकी सोच जनता के सामने उजागर तो ना होती.. पर नहीं साहब बोले बिना कैसे रह सकते है नहीं बोलेंगे तो सुर्खियो में कैसे रहेंगे.. अवसर कोई भी हो बोलने के पीछे मकसद तो सत्ता से ही है.. चुनाव तो कही भी कभी भी हो सकते है.. अभी से आधार बनायेगे तभी तो आगे कुछ कर पाएंगे… जनता कि पीड़ा किसे दिखती है.. और दिखे भी क्यों? हमें मतलब तो सिर्फ उनके वोटो से है.. एक बार वोट मिल जाये कुर्सी मिल जाये फिर कौन पूछेगा और जो अभी कुर्सी पर विराजमान है वो फिर से उस पर विराजमान होना चाहते है…

अतः नम्र निवेदन है आपसे, कृपया कर के ना बोले तो बेहतर होगा… आपके बोलने से हमें फायदा तो कुछ होता तो है नहीं उल्टा खीज आती है… और यदि वाकई में पीड़ा महसूस करते है देश के भले के लिए कुछ करना चाहते हो तो सोच के बोले, तोल के बोले और हाँ ऐसा बोले कि वो कारगर हो… वरना वो दिन दूर नहीं कि जिस आवाम ने आपको सर आँखों पर बिठाया है वो निचे जमीन पर लाते देर नहीं लगाएगी…

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