गोपाल रामचंद्र व्यास
- 19 Posts
- 3 Comments
जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह
हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं
नए सफहों पर ख्वाबो को उकेरती हैं
अगले ही पल नए सफहों के नीचे दबाकर
उन्हें यादों में तब्दील करती हैं
जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह
हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं
जैसे जैसे सफ़हे बढ़ते जाते हैं
मुकम्मल होती किताब का दर्द बढ़ाते हैं
ये एक ऐसी किताब हैं जिसके सफ़हें पलट के नहीं आते
पढो या ना पढो सफ़हे खुद-ब-खुद पलट जाते है
जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह
हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं
तुम क्या मैं क्या, क्या रंक क्या राजा
रुकते किसी के लिए नहीं
सफ़हे तो युहीं पलट जाते हैं
जिंदगी भी किताबों के सफहों की तरह
हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं
Read Comments