Menu
blogid : 2204 postid : 1379363

जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह

गोपाल रामचंद्र व्यास
गोपाल रामचंद्र व्यास
  • 19 Posts
  • 3 Comments

जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह

हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं

नए सफहों पर ख्वाबो को उकेरती हैं

अगले ही पल नए सफहों के नीचे दबाकर

उन्हें यादों में तब्दील करती हैं

जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह

हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं

जैसे जैसे सफ़हे बढ़ते जाते हैं

मुकम्मल होती किताब का दर्द बढ़ाते हैं

ये एक ऐसी किताब हैं जिसके सफ़हें पलट के नहीं आते

पढो या ना पढो सफ़हे खुद-ब-खुद पलट जाते है

जिंदगी भी किताबों के सफ़हो की तरह

हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं

तुम क्या मैं क्या, क्या रंक क्या राजा

रुकते किसी के लिए नहीं

सफ़हे तो युहीं पलट जाते हैं

जिंदगी भी किताबों के सफहों की तरह

हर रोज़ पलटती हैं हर रोज़ बदलती हैं

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh